Wednesday 20 December 2017

धन्य है वो धरा और वह मां जिनकी कोख से धर्माराम जैसे वीर सपूत पैदा हुए



धन्य है वो धरा और वह मां जिनकी कोख से धर्माराम जैसे वीर सपूत पैदा हुए
शौर्य चक्र विजेता धर्माराम को बाम्बार नमन

बंशीलाल चौधरी 
सम्पादक 
दिव्य पंचायत



धर्माराम बेनीवाल का जन्म बाड़मेर जिले के तारातरा गांव में हुआ। इनके माता-पिता गरीब किसान होते हुए भी अपने बेटों को पढ़ा लिखाकर देश कि सेवा करने  के लिए सेना में भेजना चाहते थे। उनकी उम्मीदों पर दोनों ही भाई खरे उतरे।  
शहीद धर्माराम के बड़े भाई बींजाराम वर्तमान में आर्मी से रिटायर्ड है और पोस्ट ऑफिस में काम करते है। पिता गंगाराम का स्वर्गवास धर्माराम के शहीद होने से तीन माह पूर्व ही हो गया था। वर्तमान में माता अमरू देवी की उम्र 82 वर्ष है। धर्माराम की शादी शहीद होने से 8 साल पहले धर्मपत्नी टीमू देवी के साथ सम्पन हुई। शहादत के समय शहीद की पुत्री राज्यश्री चार साल की और पुत्र हरीश मात्र पांच माह का था। वीरांगना टीमू देवी ने बी.ए., बी.एड. तक शिक्षा प्राप्त कर रखी है। धर्माराम ने वर्ष 2003 में आर्मी ज्वाइन की थी।
शहादत: 25 मई 2015 जम्मू कश्मीर के यारीपुरा जिले के काजीकुला में सेना को सूचना मिली की एक मकान में दो आतंकी छिपे हुए है। वहां तैनात बाड़मेर के लाल धर्माराम सहित उसके पंद्रह साथी आतंकियों की नापाक हरकत को नेस्तनाबूद करने के लिए मौके पर पहुंचे। लश्कर तैयबा के इन दो आतंकियों में से एक ने दोपहर 12 बजे सेना की कारवाई की भनक लगते ही फायरिंग शुरू कर दी। मकान में छिपे आतंकियों में से एक ने छल से धर्माराम पर हमला कर दिया। धर्माराम के पैर और पीठ पर दो गोली लगी। जवान धर्माराम ने अदम्य साहस और जज्बा दिखाते हुए खुद को गोली लगने के बावजूद भी इनामी और लश्कर तैयाबा के खूंखार आतंकी अख्यात उल्लाह भट्ट को मार गिराया। आतंकी भागने के लिए गोलियां बरसाते हुए छत से कूदा। उसके छालांग लगाने तक धर्माराम ने उसके सीने में 30 गोलियाँ उतार दी। वीर धर्माराम ने वीरता का अद्भुत प्रदर्शन कर अपने 15 साथियों की जान बचाई। आतंकियों से हुई मुठभेड़ में धर्माराम को दो गोलियां लगी, लेकिन उन्हे पता ही नहीं चला। अन्य साथियों ने जब धर्माराम के शरीर से बहते खून को देखा तो उन्हे कहा कि तुम्हे तो गोली लगी है। इसके बावजूद धर्माराम साथियों से 10 मिनट तब तक बातचीत करते रहे। इसके बाद 5 कि.मी. दूर यूनिट साइट पर उनका प्राथमिक उपचार किया गया तथा 20-25 मिनट बाद उन्हे हेलीकॉप्टर से मिलिट्री हॉस्पिटल श्रीनगर ले जाया गया। श्रीनगर में इलाज के दौरान धर्माराम ने अंतिम सांस ली और वे मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो गए। शहादत की रात जब शहीद की मां को आस-पास लोगों के बोलने की आवाज आई तो उठी, लेकिन सोचा गांव की होदी में लम्बे समय बाद पानी आया इसलिए लोग पानी भरने आए होंगे। लेकिन जब थोड़ी देर बाद कुछ लोग घर में आते हैं और फुसफुसाहट शुरू होती है। मां को संदेह होता है तो पूछती है कि आप लोग क्यों आए हैं। थोड़ी ना-नुकर के बाद जब बुढी मां को बताया कि उसका बेटा धर्माराम शहीद हो गया है, तो उस पर जैसे वज्रपात गिर गया। कुछ देर तो वह बोल नहीं पाई, फिर उसके करूण रूदन ने रात की खामोशी को तोड़ दिया। सुनसान रात्रि में जब बूढ़ी मां की करूणामय ध्वनि निकली तो दूर दूर तक सन्नाटा छा गया और संवेदना और करूणा की लहर उमड़ पड़ी। जब 28 मई 2015 को सुबह 9 बजे शहीद धर्माराम का शव पैतृक गांव तारातरा पहुंचा तो शव को देखते ही शहीद की माँ की सूनी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। लाठी के सहारे वह उठकर अपने बेटे के शव के पास पहुंची और बचपन में जिस प्रकार वह धर्माराम के चेहरे को दुलारती थी उसी प्रकार उन्होंने अपना हाथ शहीद के चेहरे पर फेरा और उसी पल फफ्ककर रो पड़ी। पार्थिव शरीर के घर पहुंचते ही हजारों लोगों की आंखें नम थी वहीं देश की खातिर उनकी शहादत को लेकर लोग गर्व भी महसूस कर रहे थे। सुबह 10 बजे तक भारी संख्या में लोग शहीद को अंतिम श्रद्धांजलि देने उनके घर पंहुच गए। सेना की एक टुकड़ी ने मातमी धुन के बीच सशस्त्र सलामी देते हुए शहीद धर्माराम जाट को विदाई दी। छह माह के पुत्र हरीश के द्वारा मुखाग्नि दी गई। हजारों ग्रामवासियों की उपस्थिति में बस एक आवाज धर्माराम, अमर रहें, जब तक सूरज चांद रहेगा, शहीद धर्माराम तेरा नाम रहेगा..... से अंत्येष्टि स्थल गूंज उठा। शहीद धर्माराम बेनीवाल के साहसी और वीरोचित कृत्य के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उनकी विरांगना को शौर्यचक्र प्रदान किया गया।
साभार-- वीर तेजाजी विशेषांक

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