राजस्थान की महिला सरपंच यूएन में खड़ी हुई तो तालियों से गूंज उठा था हॉल
एक लाख का पैकेज छोड़ करने लगी गांव की सेवा
दिव्य पंचायत न्यूज नेटवर्क
जयपुर। राजस्थान में महिला और महिला जनप्रतिनिधियों के बारे मे सोचते हैं तो दिमाग में घूघट वाला एक दृश्य उभर कर आता हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जिन्होने ने समाज की तमाम बंदिशों को तोड़ की समाज और महिलाओं की धारणा को ही बदलने पर मजबूर कर दिया। दूसरी और ग्रामीण विकास सरपंच पदों पर आसीन महिला सरपंच भी वही पुरानी परिपाटी, घूंघट काढ़े, डरी सी, मजबूर, किसी और की डोर से बंधी महिला की छवि नजर आती हैं। लेकिन राजस्थान में एक ऐसी भी सरपंच जो देश ही नही विदेश में भी अपनी नई धाक जमाई हैं। राजस्थान की महिला सरपंच छवि राजावत देश की उन 112 महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने किसी क्षेत्र में महिला के तौर पर पहली बार अहम मुकाम हासिल किया। इन्हें महिला व बाल विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय सम्मान के लिए चुना है।
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं छवि राजावत
एमबीए डिग्रीधारी सरपंच
एक लाख रूपये की सैलेरी छोड़ आई गांव
इसके लिए वे एक लाख रुपए माह की नौकरी को छोडक़र अपने गांव सोडा वापस आ गई। छवि राजावत का कहना है कि गांव में सूखा पड़ा था। 2010 में होने वाले पंचायत चुनाव में सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित थी। गांव वालों ने उन्हे सरपंच का चुनाव लडऩे कहा।
सरपंच बनकर बदली गांव की सूरत
यूएन में बोलने खड़ी हुई तो तालियों से गूंज उठा हॉल
वे भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के रूप में उभरी है। सामान्यत गांव से बाहर निकलते ही ग्रामीण युवा शहर शहर में ही रहने के सपने देखना शुरू कर देता है। छवि ऐसे की लोगों के लिए एक नजीर है। उन्होंने यह संदेश दिया है कि अपनी जड़ों के प्रति आग्रह रखने में कोई बुराई या शर्म नहीं बल्कि सम्मान की बात है। देश से तेजी से विदेशों में बसते जा रहे युवाओं के लिए भी छवि एक सार्थक और सशक्त उदाहरण है।25 मार्च 2011 को सरपंच छवि राजवत जब दुनिया की सबसे बड़ी सभा संयुक्त राष्ट्र में बोलने के लिए खड़ी हुईं, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। रेतीली धरती से आई इस आवाज में चाह की तपिश को दुनियाभर ने महसूस किया।
गांवों को स्मार्ट बनाए बिना संभव नहीं स्मार्ट सिटी
छवि राजावत का कहना है कि गांवों को स्मार्ट बनाए बिना स्मार्ट सिटी संभव नहीं है। हम शहरों की आरामदायक जि़ंदगी में रहते हैं और अक्सर यह भूल जाते हैं कि हमारे देश में अधिकांश लोग गांवों में रहते हैं। हर कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गांवों से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधि परिणाम देने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उनके पास वित्तीय स्वायत्तता की कमी है। ‘पंचायतों को उनके विवेक पर उपयोग के लिए धन दिया जाना चाहिए। वर्तमान में पंचायत धन के लिए नौकरशाही की मंजूरी पर निर्भर हैं।
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