Monday 18 September 2017

राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं राजस्थान राज्य विविध सेवा प्राधिकारण के कार्यकारी अध्यक्ष, के.एस. झवेरी ने बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि विषय मानते हुए बाल-वाहिनियों के संचालन के संबंध में दिशा निर्देशजारी किये है।

बाल-वाहिनियों के संचालन के संबंध में दिशा निर्देश जारी


जयपुर, । राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं राजस्थान राज्य विविध सेवा प्राधिकारण के कार्यकारी अध्यक्ष,  के.एस. झवेरी ने बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि विषय मानते हुए बाल-वाहिनियों के संचालन के संबंध में दिशा निर्देशजारी किये है।
दिशा-निर्देशों के अनुसार जो भी वाहन (बस मिनी बस वैन ऑटो एवं रिक्शा) बाल-वाहिनी के रुप में उपयोग में लाया जाए, वह वाहन पीले रंग से रंगा हुआ हो ताकि दूर से ही देखकर यह पहचाना जा सके कि वह वाहन बाल-वाहिनी के रूप में उपयोग में आ रहा है।  बाल-वाहिनी के ऊपर स्पष्ट रुप से यह अंकित हो कि वह वाहन बाल-वाहिनी के रूप में परिवहन कर रहा है यथा बाल-वाहिनी पर ऑन स्कूल ड्यूटी अंकित किया जा सकता है।
बाल-वाहिनी के पीछे वाले हिस्से पर संबंधित विद्यालय का नाम, दूरभाष नंबर, पता एवं वाहन चालक तथा परिचालक का नाम अंकित होना चाहिए।  बस बाल-वाहिनी पर होरिजॉन्टल रुप से लोहे का पाईप लगा हो तथा ऑटो/ वैन/ मैजिक में दरवाजों पर गेट पर लॉक होना चाहिए तथा ऑटो के ड्राईवर वाली साइड वह पीछे ऎसी ग्रिल होनी चाहिए जिससे कोई बालक गिर ना सके ।
बस बाल-वाहिनी पर गेट होना चाहिए और जब वह बस सड़क पर संचालित हो तो उसका गेट आवश्यक रूप से बंद होना चाहिए। बाल-वाहिनी की स्पीड अधिकतम 40 किलोमीटर प्रति घंटे की होनी चाहिए। बस/मिनीबस/ वैन बाल-वाहिनी में अग्निशमन यंत्र आवश्यक रूप से लगा हुआ हो।  जो बाल-वाहिनी स्कूल प्रबंधन द्वारा संचालित की जा रही है उनमें आवश्यक रूप से जीपीएस लगा हो तथा चालू स्थिति में हो। बाल-वाहिनी में प्रथम चिकित्सा बॉक्स एवं पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।  बाल-वाहिनी की खिड़कियों के शीशों पर किसी प्रकार की कोई फिल्म चढ़ी हुई नहीं हो, जिसके फलस्वरुप सड़क से ही बाल-वाहिनी के अंदर की स्थिति देख सकें।
 बाल-वाहिनी के भीतर रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था हो, ताकि अंधेरे में उसका उपयोग किया जा सके। विशेष योग्यजन बालकों के चढ़ते-उतरने के लिए समुचित व्यवस्था हो तथा बाल-वाहिनी में उनके बैठने के लिए एक निश्चित स्थान आरक्षित किया जाए।
जो भी बाल-वाहिनी चाहे वो स्कूल प्रबंध नेे द्वारा संचालित की जा रही हो या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा अपने स्तर पर संचालित की जा रही हो, उसके वाहन चालक तथा परिचालक का नाम, मोबाइल नम्बर तथा लाईसेन्स की प्रति स्कूल प्रबंधन, यातायात पुलिस,संबंधित पुलिस थाने तथा परिवहन विभाग के पास आवश्यक रूप से होनी चाहिए।
दिशा निर्देशानुसार सड़क पर बाल-वाहिनी के संचालन हेतु वाहन चालक की नियुक्ति के लिए आवश्यक है कि चालक के पास भारी वाहन चलाने का 5 वर्षीय अनुभव हो। यदि चालक के विरुद्ध लाल बत्ती को क्रोस करने/गलत जगह पर पाकिर्ंग करने/स्टॉप लाइन का उल्लंघन करने में/वाहन को चलाने की लेन का उल्लंघन करने में/वाहन को चलाते समय ओवरटेक करने के लिए अप्राधिकृत व्यक्ति को चलाने के संबंध में दो से अधिक बार कोई चालान एक ही साल में पेश हो चुका है तो उसे चालक के रूप में बाल- वाहिनी चलाने की अनुमति नहीं दी जाए।  यदि किसी चालक के विरुद्ध तेज गति से वाहन चलाने/नशे में वाहन चलाने/उपेक्षापूर्ण तरीके से वाहन चलाने या धारा 279, 336, 337, 338 व 304ए भारतीय दंड संहिता, 1860 तहत एक बार चालान पेश हो चुका है या आरोप लग चुका है तो ऎसी स्थिति में उसे चालक के रूप में बाल-वाहिनी चलाने की अनुमति नहीं दी जाए ।
यह स्कूल प्रशासन एवं पुलिस विभाग परिवहन विभाग यातायात विभाग का कठोर दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक बाल-वाहिनी में एक परिचालक आवश्यक रूप से हो।
यह प्रत्येक स्कूल प्रशासन का दायित्व है कि वह प्रत्येक बाल-वाहिनी चाहे वो वह स्कूल प्रशासन द्वारा संचालित की जा रही हो या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा, उस बाल-वाहिनी से बच्चों को उतारने व चढ़ाने के लिए अपने विद्यालय परिसर में एक निश्चित स्थान प्रदान करें तथा किसी भी स्थिति में बच्चों को बाल-वाहिनी में उतरने व चढ़ने के लिए सड़क पर ही ना छोड़ा जाए।  किसी बाल-वाहिनी का सड़क पर परिचालन तभी होगा जब उस वाहन को बाल-वाहिनी के रूप में परिवहन विभाग के समक्ष पंजीकृत करवा लिया गया हो।
पुलिस विभाग/परिवहन विभाग/यातायात विभाग का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करें कि बाल-वाहिनी का चालक उसको सड़क पर द्वितीय या तृतीय लेन में निर्धारित गति से एवं बिना मोबाइल बातचीत के, बिना म्यूजिक संचालन के एवं बिना धूम्रपान सेवन के चलाएं । बाल-वाहिनी की फिटनेस एवं संचालक का मेडिकल परीक्षण निर्धारित समय के अनुसार होना चाहिए। किसी भी बाल-वाहिनी में उसकी सीट क्षमता से 1.5 गुना अधिक बच्चों को नहीं बैठाया जाए, किंतु यदि 12 वर्ष से अधिक आयु का बालक है तो उसकी गणना एक पूरी सीट के लिए की जाए।
न्यायाधिपति के.एस. झवेरी ने इन सभी दिशा-निदेर्शों की पालना कठोरता से करवाये जाने एवं समय-समय पर इनका निरीक्षण वास्तविक रूप से किये जाने के निर्देश दिये है

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