देखे मैंने सुनहरे सपने
मेहनत के बल पूरा करूंगी
करके कठोर परिश्रम
ऊंचाइयों को छू लूंगी ।
रख दया भाव
कर लूंगी सपने पूरे
निद्रा त्याग कर
भूख-प्यास भूला कर
बैठ एकांत में ।
छु लूंगी सीढ़ी को
जिसका चढ़न है कठिन
करके लाख जतन
बंद कमरे में जाग कर ।
करके कठोर त्याग
आज तो जागी सो लूंगी कल
भूली जो सबको, मना लूंगी
आज तो बैठी, कल लहरा लूंगी ।
सीमा रंगा इन्द्रा हरियाणा
कवयित्री व लेखिका
No comments:
Post a Comment